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Tuesday, July 24, 2012

अब बहारों की हो चली हूँ //

कभी धूल हूँ , कभी कली हूँ
बहुत देर  हो  चुकी तुम्हारे
इंतज़ार में , अब बहारों की हो चली हूँ  //

पहले तो तुम
लफ़्ज़ों के धागे और लवों की सुई से
हर जगह मेरा नाम टांक दिया करते थे
मेरी अदाओं  को छोडो
मेरी मुस्कान पर तुम रोज सौ बार मरा करते थे //

कभी कड़ी धुप हूँ ,तो कभी गुनगुनी
मुझसे क्या खता हो गई
क्यों कर देते हो ,अब हर बात अनसुनी //

मैं मयखाने नहीं जाऊँगा ,ग़मों को मिटाने
दरख्तों ने मुझसे कहा है
अब नए पत्तों को उगाने के दिन आ गए हैं //

8 comments:

  1. परिवर्तन नियम है, इसका आनन्द जिया जाये।

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  2. जब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
    तब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!

    घनघोर घटा में सुर्ख धुंआ,आँसू बन कर आ जाते है,
    जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!

    बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  3. "मैं मयखाने नहीं जाऊँगा ,ग़मों को मिटाने
    दरख्तों ने मुझसे कहा है
    अब नए पत्तों को उगाने के दिन आ गए हैं"

    वेशकीमती ख्याल.. वाह !!

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  4. aksar aaisa hi hota hai parivartan sansaar ka niyam hai......bahut umdaaaaa..............................

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  5. सुंदर प्रस्तुति , बड़े भाई .... मरहबा !!

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  6. सुंदर रचना,बढ़िया प्रस्तुती...

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