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Wednesday, April 20, 2011

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी


हम- तुम मिलते थे
दूसरों की नज़रों से बचते -बचाते
कभी झाड़ियों में
कभी खंडहरों के एकांत में
सबकी नज़रों में खटकते थे
फिर एक दिन ...
घर से भाग गए थे
बिना सोचे-समझे
अपनी दुनियाँ बसाने //

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
देती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
मानो ...
तुम ज़र्रे-ज़र्रे में समाहित हो //

कहने को
हम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //

Monday, April 18, 2011

अब वसंत को देखकर क्या होगा


फूलों के रस में डूबा है तेरा आँचल
बादल के रंग से रंगा है तेरा काजल
अब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
क्योकि ....
अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल //



जुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
तेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
क्योकि ...
अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल //

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