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Saturday, October 23, 2010

POLLUTION---Where's the solution

We see news daily in the newspaper like...
40 admitted in hospital due to jaundice
3 die due to lungs cancer
fishes die in mexico see due oil leakage in ship
90% readers ignore this news or not ponder on this sitution

All these problems aries due to pollution...or we the logic behind this...is pollution.
it makes our ecology dirty or infectious. it harms our atmosphere/ecology in many ways.....

(1) Black smokes emitting from industrial chimney contains large percentage of carban-dioxide ,carban mono oxide ,nitrogen dioxide ,sulphur dioxide etc।It causes air pollution , it mixes with air,we inhale or breath in this infected air ,our lungs get infected.

(2) excessive use of pesticide /fertiliser makes our surface ,subsurface and underground water polluted । It pollutes the potable and affects....our whole digestive system...and affects aqua animals.

(3)medical wastes also causes air and water pollution both.......(not complete

Tuesday, October 19, 2010

जाति के बिष-वृक्ष में अब फल लगने लगे है ...

अजीब बिडंवना है भारतीय संस्कृति के ....बेहतर तो यही था कि इसे छेड़ा ही न जाए । मगर हमारे राजनेताओ ने अपनी कुशार्ग बुद्धि से इस जाति -संस्कृति से खूब खेला और लोगो के मन /दिल और दिमाग कि उर्वर भूमि पर जाति के विष वृक्ष बोये ।
अब ये वृक्ष बड़े होकर फल देने लगे है । एक तरफ उनका नारा होता है ...जाति -तोड़ो ,देश बचाओ ....फिर दूसरी तरफ आयोग बनवाकर उनकी सामाजिक /आर्थिक अध्धयन कराया जाता है । एक बात समझ में नहीं ...कि आखिर आर्थिक आधार पर लोगो कि जाति बनाने में कौन सा रोड़ा बाधक है ।
मैं समझता था सिर्फ बिहार में जाति का रंग लोगो पर ज्यादा चढ़ा है । मगर आज जब अखवार देखा तो मेरे पावं
तले की ज़मीं खिसक गई । भाई सच में जाति का जो विष -वृक्ष नेताओं ने बोया है ...उसमे अब फल बड़ी तेजी से लग रहे है ।
कभी हिंदी के महान उपन्यासकार "मुंशी प्रेमचंद्र " ने पंच को परमेश्वर कहा था ।
गुजरात उच्च -न्यायालय में एक दलित ने याचिका देकर यह गुहार लगाई है कि उसका केश जिस जज के यहाँ है
वे ब्राह्मण है और वे मेरे साथ न्याय नहीं कर सकेगे अतः मेरा जज बदल दिया जाय । अखवार के अनुसार यह मामला मकवाना जिले का है । मित्रों यह महज एक मामूली समाचार नहीं है .....यह पुरे समाज कि मनो दशा को दिखलाती है कि किस कदर जाति का भुत लोगो के दिलों -दिमाग पर छा रहा है ।
हमारे समाजशास्त्रियो को इस ओर सोचना होगा ..और जाति का जो विष -वृक्ष फ़ैल रहा है ...उसे काटने कि दिशा में एक नए सिरे से प्रहार करना होगा ।
मेरा यह सोच कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे .

Friday, October 15, 2010

रूपये कमाने की तरकीब

प्रशाशनिक पदाधिकारी ने पैसे कमाने के लिए क्लर्क बाबु को अपना दलाल बनाया हुआ था । बेईमानी में भी ईमानदारी का अपना महत्त्व होता है । क्लर्क बाबु सभी से ११०० रूपये की रकम लेता और काम करा देता।

एक दिन साहब की नज़र एक फ़ाइल पर पड़ी । साहब ने अपनी कलम वापस अपने पाकेट में कर ली । कहते है ...लड़की वालों से दहेज़ और जनता से घुस के पैसे उनकी औकात देखकर मांगी जाती है । साहब ने क्लर्क से कहा ,"इस काम के लिए पुरे पांच हज़ार लगेगें " । क्लर्क ने सहृदयता से कहा ," जैसी ईच्छा "

प्रशाशनिक पदाधिकारी ने अपनी कुशाग्र बुद्धि का भरपूर उपयोग किया । क्लर्क से कहा ," कल पार्टी को बुलाना और मेरे चैम्बर की खिड़की पास उसे खड़ा कर देना तथा उसकी फाइल मेरे टेबल पर रखना " ।" जी ,सर " कहते हुए क्लर्क ने स्वीकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया ।
दुसरे दिन क्लर्क ने पार्टी को खिड़की के पास खड़ा कर दिया तथा फ़ाइल को साहब के टेबल पर रखा । पार्टी खिड़की से साड़ी गतिविधि देख रहा था ।
फ़ाइल देखते ही साहब आग -बबूला हो गए । उन्होनें जोरदार आवाज में क्लर्क से कहा, "सस्पेंड होना है क्या ?
मुझे भी कराएगा और खुद भी होगा"। यह कहकर उन्होनें फ़ाइल टेबल पर से फेंक दी ।

क्लर्क भी भौचक रह गया । अचानक साहब का यह तेवर ! शाम को उन्होनें अपने आवास पर क्लर्क को बुलाया और कहा ," पुनः उस पार्टी से मिलो और डिमांड करो "
और सच में ,साहब की यह तरकीब काम आई । पार्टी भी भयभीत था । तुरंत ही पांच हज़ार देकर फ़ाइल पर हस्ताक्षर करवा लिया ।

Wednesday, October 6, 2010

प्रकृति से युद्ध

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले का अनुमंडल है ..बगहा .करीब एक लाख की आवादी । नेपाल और उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ । बात २००६ की है ..माह जुलाई अगस्त । वाल्मीकिनगर से आनेवाली गंडक नदी , बगहा-गोरखपुर रेल -सड़क पुल छितौनी से गुजरने के बाद दो उप धाराओ में बट जाती है । बगहा की तरफ जो उपधारा आती है उसे "रोहुआ " नाला कहते है ।
नदियाँ अपने साथ सिल्ट ( मिटटी के बहुत ही महीन कण ) लाती है और उसे जहां -तहां बेतरतीब रूप में ज़मा
कर देती है ,जिसके कारण नदियों के बहाब -मार्ग में परिवर्तन होते रहता है ।

बगहा -वाल्मीकिनगर पथ N H 28 बी से रोहुआ नाला ...बगहा के शास्त्रीनगर महल्ला से करीब १००० फिट दूर था ।
गंडक नदी में ,सिल्ट के बेतरतीब रूप में जमा होने के कारण इस वर्ष नदी के पुरे जलश्राव का ९० % रोहुआ नाला की तरफ मुड गया था । नदी को पुरे पानी को ढोने के क्रम में नदी अपना किनारा काटने लगी।

नदी का उपरी जलस्तर प्राकृतिक भूमि (natural soil लेवल) से लगभग तीन फिट नीचे थी ।
जैसा की जल संसाधन विभाग में होता है , एक कार्यपालक अभियंता के नेतृत्व में अभियंताओं की एक टीम नदी का कटाब रोकने हेतु लगा दी गई थी । नायलोन क्रेट में सीमेंट के खाली बोरे में ईट के टुकड़े भरकर कटाव को रोकने का प्रयास जारी था । मगर नदी थी ..मानने का नाम नहीं ले रही थी ।

कटाव को देखते हुए ...नागरिकों ने राजमार्ग को बन्द कर दिया । बगहा के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी श्री अभय कुमार सिंह( भा ० प्र ० सेवा ) और खंड विकास अधिकारी श्री प्रदीप गुप्ता (बिहार प्र ० सेवा ) ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जिला पदाधिकारी श्री मिहिर कुमार सिंह को एवं जल संसाधन विभाग को त्राहिमाम सन्देश भेजा । दोनों पदाधिकरियोम के आश्वाशन के बाद बन्द वापस लिया गया ।

दुसरे दिन स्वं ज़िलापदाधिकारी बेतिया से रेलगाड़ी द्वारा बगहा आ कर कटाव स्थल का दौरा किया गया । उनके साथ जल संसाधन बिभाग के वरीय अभियंता भी थे । जिनमे मुख्य अभियंता श्री श्यामनंदन प्रसाद भी थे । नदी का कटाव बहुत तेजी से सड़क की तरफ बढ़ रहा था । नदी के किनारे पर बना एक सामुदाइक भवन एवं पीपल का एक विशाल वृक्ष नदी के गर्भ में सब पदाधिकारियो के समक्ष समा गया।

नदी के रौद्र रूप से मैं भी पहली बार परिचित हो रहा था । लोगो में दहशत का माहौल था ।जितनी मुह उतनी बाते । कोई कहता कटाव वाले स्थल पर पापियों का अड्डा है ,कोई कहता जान बुझकर पानी को मोड़ दिया गया है । अखबारों में खबर छाप जाने के कारण दुसरे जगहों से भी लोग यहाँ पहुचने लगे .

मुख्य अभियंता एवं जिला पदाधिकारी द्वारा जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव श्री अशोक कुमार से कटाव स्थल से ही बात की। उनके द्वारा बताया गया कि स्वं बाढ़ -विशेषग्य श्री नीलेंदु सान्याल के साथ कटाव स्थल का दौरा करेगे ।

इसी बीच बगहा के किसी वकील ने पटना उच्चान्यालय में लोक हित याचिका दायर कर दी कि बाढ़ कटाव के कार्यो में स्थानीय प्रशासन और अभ्यान्ताओ द्वारा शिथिलिता बरती जा रही है । पटना हाई -कोर्ट ने अनुमंडल पदाधिकारी और न्यायिक्पदाधिकारी से अब तक किये कार्यो के बारे में जानकारी मांगी गई । हाई कोर्ट संतुष्ट हो गया ।

दुसरे दिन बगहा कचहरी मैदान में राज्य सरकार के हेलिकोप्टर से जल संसाधन के प्रधान सचिव और बाढ़ विशेषग्य श्री सान्याल बगहा पहुचे ।

श्री सान्याल ,तुरंत कटाव स्थल पहुंचकर नदी के धारा के वेग को मापा । उन्होंने बताया कि नदी के पानी का वेग इतना ज्यादा हाई कि खाली सीमेंट के बुरे में ईट के टुकड़े भर कर देने से कटाव रोकने का प्रयास निर्थक होगा ।
उन्होंने निन्म सुझाव दिए

१)...लोहे कि जाली 10' x 5' x 2' माप का में पत्थर रखकर नदी के बेड में डाला जाए । एक पत्थर कम से कम ५० किलो का हो
(२)... जहा कटाव ज्यादा था, नदी के बेड में सखुआ के बल्ले गाड़ने को कहा गया ।
(३)... रात -दिन कार्य जारी रखा जाए , तीन पालियों में काम कराया जाए ।

तुरंत मिर्जापुर ( उत्तर प्रदेश ) से लगभग ५० ट्रक पत्थर ढोने में लग गए । एक दल रांची से बल्ले लाने चला गया ।
कटाव एवं सुरक्षात्मक कार्य २४ घंटे ज़ारी रखा गया । एक पाली में पांच ईंजिनीयर थे ....मैं भी एक पाली का नेतृत्व
कर रहा था ।

तीन दिनों तक अहर्निश कार्य कराने के बाद नदी कुछ शांत हुई ...और अंततः हमलोग बगहा को बचने में समर्थ हुए । मगर हमलोग लगभग एक सौ पक्के मकान और २०० कच्चे मकान नहीं बचा सके ।
प्रकृति से युद्ध का यह मेरा पहला अनुभव था ।

Monday, October 4, 2010

विज्ञान और भगवान्

खोज ली हमने
तरह -तरह के रोगों के जनक
विषाणुओ और जीवाणुओ को
सूरज की लालिमा और
तबाह करने वाले चक्रवातों के
कारणों को भी ॥

बाँझ महिलायों को पुत्रवती बनाने का
रहस्य खोज लिया , हमने
पानी में /सूक्ष्मतम कनों में
छिपे ऊर्जा को खोज लिया हमने ॥
सूर्य की रौशनी / हवा के झोंके को
बदल देते है हम बिजली में ॥

कृत्रिम हृदय बना लिया हमने
और तो और
उस जीन को भी खोज लिया हमने
जो चमरियो का कसाब ढीला करती है
हम अग्रसर है ...
आयु का शतक लगाने की ओर ॥

ऐसा कर ....
एक तरफ हम चुनौती देते है
ईस्वर की सृष्टी को
कहते है ...ईश्वर नहीं है
तो दूसरी तरफ
ईस्वर के नाम पर रोज लड़ते है॥

Saturday, October 2, 2010

जब गेंडे को नशीली सुई दी गई


वैसे जानबरो के चरित्र और क्रिया कलापों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है , ना ही मैं इस क्षेत्र से जुड़ा हूँ
वैसे जानबरो के बारे में अधिकाधिक जानकारी लेने और पढने में मेरी पूरी दिलचस्पी है ।

जमशेदपुर ,जिस टाटानगर भी कहते है ,अपने स्टील कारखाने के कारण पुरे विश्व में जाना जाता है । पूरा जमशेदपुर
घने जंगलों एवं पहाड़ो से घिरा है । सिल्वर -जुबली पार्क और डिमना -लेक यहाँ के प्रमुख प्रयटक स्थल हैं । डिमना -लेक में जमा अथाह जल राशि को शोधित कर जमशेदपुर शहर में पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है . जमशेदपुर से कुछ ही दूर है ..." दलमा अभ्यारण्य " जहां हाथी बहुतायद में पाए जाते है । मेरे मित्र श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह सन २००२ में इसी अभ्यारण्य में रेंज -ओफ्सर के रूप में पदस्थापित थे । उनके अनुरोध को मैं नहीं टाल सका । उनकी sarkaari गाडी में सवार हो उनके साथ मैं दलमा -अभ्यारण्य देखने निकल पड़ा ।

प्रवेश के स्थान पर मैंने पतले तार .पिलर में बंधे हुए दूर दूर तक देखे । मैंने उनसे इन तारों के बारे में पूछा । उनके द्वारा बताया गया कि प्रायः सभी अभ्यारण्य की सीमाए खुली होती है और जानवर निर्भीक हो कर रात में /दिन में
आस -पास के गांवों में प्रवेश कर जाते है तथा किसानो की फसलों को बर्बाद कर देते है । हालाकि ऐसी स्थिति में किसानो को मुआबजा देने का प्राबधान है फिर भी सरकारी लम्बी प्रक्रिया में कौन उलझाना चाहता है । इन तारों में हलकी मात्रा में बिजली प्रवाहित की जाती है , जिससे जानवर उसके आगे नहीं जा पाते ।

ठीक इसी तरह "वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य " और नेपाल की " चितवन -नेशनल पार्क " की सीमाए
खुली है तथा वहाँ किसी प्रकार के बिजली के तारों का इस्तेमाल नहीं किया गया हैं । फलतः नेपाल के जानवर और भारतीय जानवर इन्सानों की तरह ही बेरोक -टोक सीमा पार करते है ।

वर्ष २००४ में जब मैं वाल्मीकिनगर में था , भीषण बरसा के साथ , नदी की जल -प्रवाह के सहारे एक मोटा -ताजा गेंडा बह कर वाल्मीकिनगर से सटे नेपाल के त्रिवेणी बाज़ार में आ गया एवं गाँव वासियों को अपने सींगों से प्रहार कर उपद्रव करने लगा।

जब तीन -चार दिनों के बाद भी गेंडा वापस जंगल में नहीं लौटा ,तब लोगों ने इसकी शिकायत वन्य -प्राणी अभ्यारण्य के पदाधीकरियो से की । तत्पश्चात एक बड़े पिंजड़ा नुमा ट्रक पर सवार हो वन विभाग नेपाल के पदाधिकारी आये । उन्होनें दूरबीन लगे रायफल की मदद से एक नशीली सुई गेंडे को निशाना साधकर लगाया । सुई लगने के उपरांत गेंडा शांत चित हो गया , जिसे तुरंत ही कर्मियों ने जालीदार पिंजड़ा नुमा ट्रक में डाल दिया
फिर उसे घने जंगलों में छोड़ दिया गया ।

एक चीज जो मैंने अनुभव किया कि चिड़ियाखाना में बन्द और खुले अभ्यारण्य में विचरने वाले जन्तुओ
कि ताकत में ज़मीं -आसमान का अंतर होता है ।

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