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Thursday, September 30, 2010

गोल्डीफोक्स जोन क्या है ?

पृथिवी से बाहर जाकर रहने की तमन्ना ने मनुष्यों को बहुत से खोज करने के अवसर दिए ... चाँद और अन्तरिक्ष के बाद मनुष्यों ने पृथ्वी के सौर - मंडल के बाहर एक दुसरे तारे के सौर -मंडल में एक नए ग्रह " गोल्डीफोक्स ज़ोन " की खोज कर ली है ॥ कलिफ़ोर्निया विश्व -विद्यालय ने इसकी घोषणा की गई है ॥

यह ग्रह पृथिवी के आकार का एवं पृथिवी के द्रब्यमान का तीन गुना है । खगोलविद स्टीवन वोग्ट कहते है
..." हमारे निष्कर्ष यह कहते है कि यहाँ तरल मौजूद है और मानव जीवन के अनुकूल है "....यदि इस दल के निष्कर्षो को अन्य वैज्ञानिकों कि स्वीकृति मिल जाती है तो यह अब तक खोजा गया ऐसा पहला ग्रह होगा ,जो पृथिवी से बहुत हद तक मिलता जुलता है
( हिन्दुस्तान से साभार )

Tuesday, September 28, 2010

ग्रौस नॅशनल हैपीनेस क्या है ?

वैसे तो किसी भी देश और उसके नागरिकों की समृद्धि ,उन्नति मापने के अनेकों इंडेक्स ( सूचकांक ) है ..जिनमे प्रमुख है ...सकल घरेलु उत्पाद ,प्रति व्यक्ति आय ,बाड़ी - मास इंडेक्स ..ईत्यादी ।

भारत का पडोसी तथा सार्क देशों का सदस्य हिमालय की तराई में बसा छोटे से देश " भूटान " के प्रधान मंत्री श्री जिग्मी वाई ठीनले ने दिनाक २६-९-२०१० को बोधगया ( बिहार ) का भ्रमण किया । उन्होंने विश्व बिरादरी के समक्ष "ग्रौस नॅशनल हैपीनेस" नाम का एक नए सूचकांक का विकास मोडल पेश किया है । इस इंडेक्स में देशवाशियो की देश के प्रति भक्ति ,उनकी ख़ुशी और देश में धर्म के प्रति आस्था जैसे मानकों को शामिल किया गया है ।

भूटान एक बौद्ध देश है तथा बोधगया (बिहार ) में ,जो भगवान बुद्ध के ज्ञान -प्राप्ति स्थल के कारण पुरे विश्व में विख्यात है , इस देश का एक भव्य मंदिर है । भूटान के प्रधान -मंत्री ने बताया कि वे पश्चिमी देशों कि तरह विकास की अंधी -दौड़ में शामिल नहीं है । भूटान के विकास का पैमाना " धर्म ,आचार ,संस्कृति ,तथा पर्यावरण " की सुरक्षा से जुदा है । अध्यात्मिक ,वैज्ञनिक और भौतिक विकास भी साथ -साथ समन्वय स्थापित कर चलते है

धन्य है नन्हा सा भूटान । एक हम है कि विकास कि आधुनिकता को लेकर जिंदगी को रेस में बदल दिया है तथा अपनी शादाब्तियो पुराणी संस्कृति ,लोकाचार , अध्यात्म , योग नृत्य पर्यावरण को टाटा -बाय -बाय कह रहे है ।

Friday, September 24, 2010

कृषि संबंधी प्रशिक्षण गाँव में हो

मुझे पटना स्थित "जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान " में सिंचाई जल के समुचित उपयोग विषय पर प्रशिक्षण हेतु चुना गया था । पांच दिवसीय प्रशिक्षण में कृषि क्षेत्र में सिंचाई जल के समुचित उपयोग पर विस्तार से चर्चा की गयी ।

प्रायः लोगो में / किसानों में ऐसी धारणा है कि फसलों में जितना पानी दो ,उतना ही अच्चा । परन्तु बात ऐसी नहीं है । प्रत्येक फसलों के लिए पानी की मात्र निर्धारित है । ज्यादा या कम पानी देने से फसल की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
नाईट्रोजन ,फोस्फोरस और पोटाश , तीन ऐसे तत्व है जिन्हें हर पौधे कोजरुरत होती है । मगर पौधे वायुमंडल में उपलब्ध को
नाईट्रोजन उसी रूप में ग्रहण नहीं कर पाते । पौधे नाईट्रोजन को नाईट्रेटके रूप में ग्रहण करते है और इस कार्य में " राईजोबियम " नामक बैकटेरीया हमारी मदद करता है । ये बैकटेरीया फलीदार पौधों जैसे चना ,मटर ,मूंग ईत्यादी के जड़ों की गाठों में पाया जाता है

हमारे किसान पढ़े -लिखे नहीं होते ,जिसके कारण वे फसल चक्र के महत्त्व को नहीं समझ पाते वे हर वर्ष धान और गेंहू की फसल लगाते है और
नाईट्रोजन के लिए भारी मात्रा में यूरिया का प्रयोग करते है । अगर धान के बाद चना ,मूंग ,मटर की एक फसल ले ली जाये तो वह भूमि नाईट्रोजन से संपोषित हो जायेगा और किसानों को कम लागत में अच्छी उत्पादकता मिलेगी ।
एक तीसरी बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी ,वो यह है की लोग यूकिलिप्टस के पेड़ जहाँ -तहां लगा देते है
यूकिलिप्टस बहुत तेजी से भूमि जल खीच कर वातावरण में भेजता है .इस पौधे को वैसी जगह लगाना चाहिए ,जहां जल -जमाव हो या भूमिगत जल -रेखा ( वाटर -टेबले ) बहुत ऊपर हो ।

ऐसे प्रशिक्षण की आवश्यकता गाँव -गाँव में है । गाँव में अब बड़े -चौड़े विद्यालय है , जिनमे प्रशिक्षण कार्य देना बहुत ही आसान है । गाँव में प्रशिक्षण आयोजित कर जहाँ हमलोग एक तरफ कृषि के विकास की बात करेगे ,वही दूसरी ओर किसानों की समस्याओ से भी रु-ब -रु हो सकेगे । साथ ही बंजर हो गई भूमि की मिटटी जाँच एवं उसे खेती योग्य उर्वर जमीनमें बदलने की प्रक्रिया किसानो के समक्ष कर इस भावना को जागृत करेगे कि अगर कृषि ,वैज्ञानिक ढंग से की जाये तो कभी भी हानी नहीं होगी । इसतरह कृषि से विमुख होने वाले किसान भाइयो /मजदूरों को हमलोग शहरों की भीड़ में जाने से रोक सकेगे ।
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Friday, September 17, 2010

आइए, वाल्मीकिनगर से पोखरा चलें

वाल्मीकि नगर से ही नेपाल के प्राकृतिक सौन्दर्य का दर्शन होना प्रारंभ हो जाता है , मैं अपने को रोक न सका । वाल्मीकिनगर से बराज से पुल पार करने के बाद पहाड़ो की तलहट्टी में बसा है नेपाल का त्रिवेणी धाम । यहाँ से नेपाल के काठमांडू ,पोखरा ,बुटवल इत्यादि शहरों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है ।
नेपाल और भारत के अंतरास्ट्रीय समय में १५ मिनट का अंतर है .मतलब अगर भारत में ९.४५ बजे है तो नेपाल में १० बजेगा । नेपाली समयानुसार सुबह पांच बजे से बसे चलना प्रारंभ हो जाती है।
मैंने सुबह वाली बस पकड़ी। जुलाई २००८ की बात है लगभग २५ किलोमीटर चलने के बाद 'बरटांड" नामक स्थान पर बस कुछ देर के लिए रुकी । वास्तव में बस अब "महेंद्र राजमार्ग " पर चलने के लिए तैयार थी । जानकारी के लिए बता दू ...नेपाल में महेंद्र राजमार्ग और त्रिभुवन राजमार्ग दो बहुत ही महत्वपूर्ण सडकें है ।

बस अब महेंद्र राजमार्ग पर दौड़ रही थी । मैं पहलीबार नेपाल की वन संपदा देखकर दंग रह गया । सखुआ के मोटे -मोटे वृक्ष मैंने पहलीबार देखा था ..जो करीब ५० -६० फिट की ऊँचाई तक एकदम सीधा था । दोनों तरफ पहाड़ो का अनुपम सौन्दर्य और हरीतिमा मन को मोहने के लिया काफी था । मैंने सड़क के किनारे लगे सुचना पट्ट को पढ़ा .... मेरी बस "दाउने नेशनल पार्क" से होकर गुजर रही थी । एक जगह बस रुकी .....शायद सड़क पर कुछ मलवा पड़ा था । बरसात के दिनों में भू -अस्ख्लन आम बात है । यहाँ पर पहाड़ लगभग सीधी थी ...करीब ३०० फीट( १०० मीटर ) ऊँचा ।

झरने जिनका नाम सुनते ही हमें देखने की इच्छा होती है । एक बार मैं सिर्फ झरने देखने के लिए मध्य -प्रदेश के पचमढ़ी नामक स्थान गया था । मगर मैंने असंख्य झरने सडकों के किनारे देखे ....जिसका पानी सड़क पर ही बह रहा था । पानी इनता साफ़ मानो बोतल बंड पानी की तरह । सड़क के किनारे होटलों में इसी पानी का प्रयोग हो रहा था ....गाँव के लोग इस पानी को जमा कर उपयोग में लाते है ।
वाल्मीकिनगर में हम जिसे गंडक नदी कह रहे थे वह नेपाल में नारायणी नदी के नाम से जाना जाता है ।

लगभग नौ बजे मैं नारायण घाट पहुंचा.नारायणी नदी के किनारे यह बसा शहर बहुत ही खुबशुरत है । यहाँ तो प्रयटको का मानो मेला लगा था .दुसरे मार्गों की बसों को भी काठमांडू जाने के लिए यहाँ आना पड़ता है,पूर्वी नेपाल से आने वाली बसें । यही से पहाड़ो की चढ़ाई मुख्य रूप से प्रारंभ होती है । बस के चालक द्वारा अनुरोध किया गया कि सब कोई भोजन कर ले । बहुत लोग बस से उतर कर छोटी गाडी टाटा की रिन्गर पकड़ ली । मुझे सौन्दर्य को देखना था । मैंने बस पर बैठना उचित समझा । नेपाल के छोटे -से छोटे होटल में भी आपको बियर और शराब उपलब्ध होती है । पीने वालो की तो पूछिये मत । शायद अधिकांश लोग मस्ती करने ही नेपाल जाते है ।

बस खुल चुकी थी । एक तरफ २००० फिट नीचे नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ १००० फिट ऊँचे पहाड़ ।
नदी के दूसरी तरफ कुछ गाँव नज़र आ रहे थे । लोगो को सड़क तक आने के लिए ऋषिकेश में बने लक्ष्मण झूले जैसे पुल बने थे । खेतों में धान और मकई के पौधे साफ़ नजर आ रहे थे । झरने देखते -देखते मानो मन थक गया ।
नदियों का ढाल बहुत ही ज्यादा है । इनमे छोटे -छोटे बाँध बनाकर खूब पनबिजली बनाई जा सकती है । सड़क के किनारे तो मुझे कही नहीं मिला । हां ...पत्थरो को तोड़ने वाले क्रशर मिले .... पत्थरो की गिट्टी और बालू से ईट बनाने के बहुत से कारखाने मिले । रास्तों में कंक्रीट के ईट का उपयोग कर बनाए गए मकान भी दिखे ।

तिम्लिंग के बाद सड़क दो भागों में बट गई ...एक भाग काठमांडू की ओर दूसरी पोखरा की तरफ । कुछ दूर तक मैदानी भाग आया ..बस सरपट दौड़ रही थी । अब मैं पोखरा पहुँचने ही वाला था । पोखरा बस स्टैंड पर बस रुकी
मुझे पूर्व से ज्ञात था ....पोखरा का महतवपूर्ण स्थल झील के किनारे वाली मुख्य सड़क पर बने होटलों का किराया बहुत अधिक होता है । अतः मैंने झील से लगभग ५०० मीटर दूर अपना होटल लिया । ( क्रमशः )

Thursday, September 16, 2010

आईये वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य चलें

सहसा मेरी नज़र उस विज्ञापन पर पड़ी ,जिसमे क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी बता रहे थे ॥" सिर्फ १४११ बचे है "
उसके नीचे एक बाघ का फोटो ॥
जिन बाघों से हमारे दादा -दादी हमको डराते थे ,आज वे स्वम विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चूके है ॥
भारत में बाघों के संरक्षण एवं प्रजनन को लेकर " टाईगर प्रोजेक्ट " की शुरुयात सन १९७३ में की गई । अब तक देश भर में २७ बाघ अभ्यारण्य काम कर रहे है ॥ वर्ष २०००-२००१ तक भारत के कुल ३७,७६१ वर्ग किलोमीटर में यह फैला हुआ है ।
मुझे कहते हुए गर्व हो रहा है कि बिहार में भी एक बाघ अभ्यारण्य है । यह बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल में अवस्थित है । इसे " वाल्मीकिनगर टाईगर प्रोजेक्ट " के नाम से जाना जाता है । उत्तर प्रदेश ,नेपाल और बिहार कि सीमा पर अवस्थित वाल्मीकिनगर जैव -प्रयटन के लिया विख्यात है ।यह पश्चिम चंपारण जिला के मुखायल बेतिया से १२० किलोमीटर दूर अवस्थित है । नजदीकी रेलवे स्टेशन बगहा है ..जो कि मुज़फ्फर पुर -गोरखपुर रेल -खंड का एक प्रमुख स्टेशन है । यहाँ रुकनेवाली महत्वपूर्ण गाडियों में सप्तक्रांति एक्सप्रेस ,मुजफ्फरपुर -देहरादून ,पुवांचल एक्सप्रेस ..मुख्य है । बगहा से वंलिकिनगर के लिए बसे और प्राइवेट टैक्सियाँ चलती है । दुरी करीब ४५ किलोमीटर है ,जिसमे ३० किलोमीटर का रास्ता घने जंगलों से होकर जाता है । फलदार वृक्षों की कमी है फिर भी बंदरों के झुण्ड आपको सडकों पर उछल- कूद करते मिलेगें ।
बगहा से वाल्मीकिनगर जाने के क्रम में नौरंगिया नामक स्थान के बाद मुख्य सड़क किनारे ..एक स्थान है जहाँ स्थानीय निवासी पूजा करते है ,वहाँ के पेड़ों पर चम्गादरो का एक झुण्ड रहता है ..ये चम्गादर लगभग ३-४ किलोग्राम के है ..इन्हें कोई नहीं मारता ।
वाल्मीकिनगर में गंडक नदी पर बराज बना है ,बराज पर बने पुल से नदी पार कीजिये ,आप नेपाल की धरती पर अपनेआप को चहलकदमी करते हुए पायेगे । गर्मी कितनी भी हो ,अगर आप बराज पर आ गए तो बराज के अपस्ट्रीम में बने जलाशय से होकर गुजरनेवाली शीतल हवाए आपका स्वागत करेगी और इस सुखद एहसास को आप भुला नहीं पायेगे ।
अगर दिन साफ़ हो तो आपको बराज से हिमालय की धवल चोटियाँ साफ़ नज़र आएगी । लगभग चार से पांच शाम के समय जब सूर्य की किरणे वर्फ की चोटियों पर तिरछे पड़ती है तो ..श्वेत धवल चोटियाँ का इन्द्रधनुषी परिवर्तन अवर्णनीय है ।
प्रसंग वश मैं यहाँ बता देना चाहता हूँ कि मैं २००५ से २००९ तक दोन शाखा नहर के शीर्ष -भाग का अवर -प्रमंडल -पदाधिकारी के रूप में कार्यरत था ...दोन शाखा नाहर के द्वारा नेपाल -पूर्वी -नहर को पानी दिया जाता है । और मैंने इन प्राकृतिक नजारों का भरपूर सेवन किया है ।
वाल्मीकिनगर में ठहरने के लिए बिहार राज्य प्रयतन विकास निगम का होटल " वाल्मीकि विहार " अवस्थित है जहाँ लगभग २५० ( दो सौ पचास ) रूपये प्रतिदिन का किराया लगता है । साथ ही जल -संसाधन विभाग का विश्राम गृह तथा बिहार राज्य हैड्रो पवार निगम का विश्राम गृह उपलब्ध है ।
जिन्हें जंगल और उसकी सुन्दरता से प्रेम है ,उन्हें यह जगह गले लगाता है । बीच जंगलो में नर देवी का मंदिर और जटाशंकर का मंदिर मन को मोह लेता है । एक किलोमीटर पैदल चलने की ईच्छा आपको नेपाल के चितवन जिले के घने जंगलों में अवस्थित वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में ले जायेगी । कहते है माता सीता ने लंका से लौटने के बाद अपना समय इन्ही जंगलों में गुजारा था तथा लव -कुश का जन्म भी यही हुआ था । नेपाली वास्तु कला से परिपूर्ण माता जानकी एवं वाल्मीकि ऋषि का आश्रम देखकर आप मन्त्र -मुग्ध हो जायेगे । मंदिर के पुजारी श्री शेकर द्विवेदी आपको मंदिर एवं पुराने यादगार प्रतीकों को बड़े ही धैर्य -पूर्वक बताते है । वाल्मीकि आश्रम तक जाने के क्रम में दो नदियाँ "तमसा " एवं "सोनहर" आपके चरण धोएगी । गोल -गोल पत्थरो के बीच नदी की बहती जल- धारा आपको रंग -विरंगे शालिग्राम चुनने पर विवश कर देगी ।
भारत -नेपाल के खुले सीमा का लाभ अराजक तत्व न उठावे ..इसलिए सीमा शस्त्र बल की १२ वी बटालियन यहाँ तैनात है ...रोज सुबह जंगलों में इनका परेड देखना भी अच्छा लगता है ।

गरीबी रेखा कौन सी बला है

शुरू में मुझे भी नहीं पता था कि ये गरीबी रेखा क्या होती है ....शायद ज्यामिति की तरह कोई रेखा हो ...
मगर जब मुझे इस सम्बन्ध में काम करने का मौका मिला ..तो सारी बाते स्पस्ट हो गई ॥
दरअसल, सरकारी योजनाओ के कार्यान्वयन में हो रही दिककत्तो को दूर करने के लिए यह अनिवार्य था ॥
.....गरीबी रेखा के निर्धारण के क्रम में कुल १३ सवाल जनता से पूछे जाते है ॥
कुछ सवालों का व्य्योरा निम्न प्रकार है
१) आप कितने भूमि के हक़दार है ॥
२)कितनी भूमि सिंचित है ॥
३) आप कहाँ तक पढ़े है
४)आप साल में कितने कपडे पहनते है ..इत्यादि
प्रत्येक सवाल के चार विकल्प है और पाच नंबर है ..शून्य से लेकर चार तक
अर्थात अधिकतम ५२ नंबर तक आ सकता है
निधारित मान्यता के अनुसार अगर किसी को १३ नंबर तक या उससे नीचे आता है तो उसे गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है । गाँव में चलनेवाली सारी योजनाये १३ अंक लाने वाले व्यक्तियों तक सीमित कर दिया गया है ॥
फलतः सरकारी योजनायो का फायदा उठाने के लिए सब लोग तिकड़म लगाकर १३ या उससे नीचे का अंक प्राप्त करने को उतावले रहते है ।
इस कार्य को अंजाम देने के लिए अर्थात प्रश्न पूछने के कार्य में गुरु जी को/ प्रखंड के कर्मचारियों को लगाया जाता है।इनकी भूमिका संदेहस्पद मानी जाती है
एक बार सूचि बन जाने के बाद उसी के अनुरूप ग्रामवासियों को योजना का लाभ मिलता है ।
परन्तु मुखिया या ग्रामसेवक गाँव के भोले भले लोगों को डर दिखाकर..इंदिरा आवास एवं अन्य योजनाओ का लाभ दिलाने हेतु अवैध वसूली करते है । वसूली करने में गाँव वासी ही दलाल की भूमिका अदा करते है
चुकि रुपया लाभान्वित के बैंक खाता में जमा होता है इसलिए पकड़ में कोई नहीं आता ।






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